News : बिना नेटवर्क के भी चलेगा इंटरनेट! भारत ने एलन मस्क की स्टारलिंक को दी सर्विस की मंजूरी!

News : भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) ने एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स (SpaceX) की स्टारलिंक (Starlink) को भारत में अपनी सैटेलाइट इंटरनेट सेवाएं शुरू करने के लिए अंतिम नियामक मंजूरी दे दी है।

यह खबर उन क्षेत्रों के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है जहां पारंपरिक इंटरनेट कनेक्टिविटी अभी भी एक चुनौती है। इस मंजूरी के साथ, भारत अब उन 100 से अधिक देशों में शामिल हो गया है जहाँ स्टारलिंक अपनी सेवाएं प्रदान करता है।

News : स्टारलिंक को मिली हरी झंडी

स्टारलिंक 2022 से ही भारत में अपनी वाणिज्यिक सेवाएं शुरू करने का इंतजार कर रही थी। विभिन्न नियामक स्वीकृतियों में देरी के कारण यह प्रक्रिया लंबी खिंच गई थी। पिछले महीने, कंपनी को दूरसंचार मंत्रालय (DoT) से एक आवश्यक लाइसेंस प्राप्त हुआ था, लेकिन अंतरिक्ष विभाग से अंतिम मंजूरी बाकी थी, जो अब मिल गई है। रॉयटर्स के सूत्रों के अनुसार, यह स्टारलिंक के लिए आखिरी बड़ी नियामक बाधा थी।

यह लाइसेंस 8 अप्रैल, 2025 से पांच साल या ‘जेनरेशन-1’ सैटेलाइट कॉन्स्टेलेशन के परिचालन जीवन के अंत तक (जो पहले हो) तक वैध रहेगा। इस मंजूरी के साथ, स्टारलिंक, यूटेलसैट की वनवेब और रिलायंस जियो के बाद भारत में तीसरी सैटेलाइट इंटरनेट सेवा प्रदाता बन गई है जिसे सरकार से सभी आवश्यक नियामक अनुमतियां प्राप्त हुई हैं। अब कंपनी को केवल सरकार से स्पेक्ट्रम आवंटन का इंतजार है, जिसके बाद वह वाणिज्यिक रूप से अपनी सेवाएं शुरू कर सकेगी।

News : स्टारलिंक कैसे करेगा काम

स्टारलिंक की तकनीक पारंपरिक इंटरनेट से काफी अलग है। यह लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) में स्थापित हजारों छोटे सैटेलाइट्स के एक विशाल समूह का उपयोग करता है। ये सैटेलाइट पृथ्वी से लगभग 550 किलोमीटर ऊपर परिक्रमा करते हैं, जिससे डेटा संचार में कम विलंबता (latency) होती है, जो पारंपरिक जियोस्टेशनरी सैटेलाइट्स की तुलना में बेहतर है जो पृथ्वी से बहुत अधिक ऊंचाई पर होते हैं।

उपयोगकर्ताओं को अपने घर या स्थान पर एक छोटी सैटेलाइट डिश (जिसे आमतौर पर ‘स्टारलिंक डिश’ या ‘टर्मिनल’ कहा जाता है) स्थापित करनी होगी। यह डिश आकाश में स्टारलिंक सैटेलाइट्स के साथ सीधा संचार स्थापित करती है।

यह कनेक्शन फिर उपयोगकर्ता के राउटर से जुड़ जाता है, जिससे उन्हें वाई-फाई के माध्यम से इंटरनेट की सुविधा मिलती है। चूंकि यह प्रणाली सीधे सैटेलाइट से जुड़ती है, इसलिए इसे पारंपरिक मोबाइल टावरों या भूमिगत केबलों की आवश्यकता नहीं होती है।

इसका मतलब है कि दूरदराज के क्षेत्रों, पहाड़ों, या यहां तक कि समुद्री इलाकों में भी जहां कोई मोबाइल नेटवर्क नहीं होता, वहां भी हाई-स्पीड इंटरनेट उपलब्ध हो पाएगा। आपातकालीन स्थितियों में बिना मोबाइल नेटवर्क के कॉलिंग भी संभव हो सकती है।

News : डिजिटल डिवाइड को पाटने का अवसर

भारत में स्टारलिंक के आगमन से डिजिटल डिवाइड को कम करने की अपार संभावनाएं हैं। भारत के कई ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में अभी भी ब्रॉडबैंड या मोबाइल इंटरनेट की पहुंच सीमित है। पारंपरिक इंफ्रास्ट्रक्चर को इन दुर्गम इलाकों तक पहुंचाना महंगा और मुश्किल होता है। सैटेलाइट इंटरनेट, खासकर स्टारलिंक जैसी LEO-आधारित प्रणाली, इन बाधाओं को दूर कर सकती है।

इससे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, कृषि और छोटे व्यवसायों जैसे क्षेत्रों में क्रांति आ सकती है। जहां पहले छात्र ऑनलाइन कक्षाओं से वंचित थे या किसान मौसम की जानकारी प्राप्त करने में असमर्थ थे, वहीं अब उन्हें हाई-स्पीड इंटरनेट की सुविधा मिल सकेगी। यह सरकारी योजनाओं जैसे ‘डिजिटल इंडिया’ को भी मजबूत करेगा, जिसका उद्देश्य देश के हर कोने तक डिजिटल सेवाएं पहुंचाना है।

News : प्रतिस्पर्धा और संभावित लागत

स्टारलिंक के बाजार में आने से भारत में सैटेलाइट इंटरनेट के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और निवेश दोनों के बढ़ने की उम्मीद है। पहले से ही यूटेलसैट वनवेब और रिलायंस जियो सैटेलाइट कम्युनिकेशंस इस दौड़ में शामिल हैं, और अब स्टारलिंक के आने से उपभोक्ताओं को बेहतर विकल्प और सेवाएं मिलने की संभावना है। अमेजन का कुइपर प्रोजेक्ट भी भारत में मंजूरी का इंतजार कर रहा है, जिससे यह क्षेत्र और भी प्रतिस्पर्धी हो सकता है।

लागत की बात करें तो, शुरुआती रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत में स्टारलिंक की सेवा के लिए हर महीने लगभग ₹3,000 का खर्च आ सकता है। इसके अतिरिक्त, सैटेलाइट डिश (डिवाइस) की कीमत लगभग ₹33,000 हो सकती है। यानी, शुरुआत में कुल मिलाकर लगभग ₹36,000 का खर्च आ सकता है। हालांकि, ये आंकड़े अस्थायी हैं और वाणिज्यिक लॉन्च के समय इनमें बदलाव संभव है।

IN-SPACe से मंजूरी मिलने के बाद, स्टारलिंक को अब भारत सरकार से स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया पूरी करनी होगी। इसके बाद, जैसे ही कंपनी अपने बेस स्टेशन तैयार करती है, वह भारत में अपनी ब्रॉडबैंड सेवाएं शुरू कर सकती है।

उम्मीद है कि वाणिज्यिक सेवाएं एक से दो महीने के भीतर शुरू हो सकती हैं। यह निश्चित रूप से भारत के दूरसंचार परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा, जो देश के हर नागरिक को इंटरनेट से जोड़ने के लक्ष्य की ओर एक बड़ा कदम है।

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