News : केदारनाथ आपदा से मिलती-जुलती है उत्तरकाशी की तबाही, पढ़ें!

News : उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में आई हालिया आपदा ने एक बार फिर देवभूमि को झकझोर कर रख दिया है। यह त्रासदी, जिसकी भयावहता का सटीक आकलन अभी तक नहीं हो पाया है, 2013 की केदारनाथ आपदा की दर्दनाक याद दिलाती है।

भूवैज्ञानिकों और विशेषज्ञों का मानना है कि इस आपदा का मुख्य कारण गंगोत्री क्षेत्र में ग्लेशियरों के पिघलने से बने तालों का टूटना और भागीरथी नदी की सहायक नदी खीर गंगा के अपने पुराने मार्ग पर वापस लौटना है।

News : केदारनाथ त्रासदी जैसी ही कहानी

देहरादून विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग के प्रोफेसर डी.डी. चौनियाल के अनुसार, उत्तरकाशी के धराली कस्बे में हुई तबाही 2013 की केदारनाथ आपदा से काफी मिलती-जुलती है। उस समय, चोराबारी ताल के टूटने से अचानक आई बाढ़ ने भारी तबाही मचाई थी, और इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ है।

विशेषज्ञों का मानना है कि 5 अगस्त 2025 को हुई इस घटना के पीछे कई कारण हैं, जिनमें से दो प्रमुख हैं:

* खीर गंगा का पुराने रास्ते पर लौटना: दशकों पहले खीर गंगा का मार्ग बदल गया था, जिसके कारण उसके पुराने रास्ते पर अवैध निर्माण हो गए थे।

* धराली गांव में नियमों के विपरीत निर्माण: पुराने और सुरक्षित स्थानों को छोड़कर नदी के किनारे असुरक्षित स्थानों पर नए निर्माण कार्य किए गए।

News : खीर गंगा का रौद्र रूप और उसका विनाशकारी प्रभाव

प्रोफेसर चौनियाल ने वीडियो और गूगल इमेज के माध्यम से बताया कि भारी बारिश के कारण ग्लेशियर वाले क्षेत्रों में छोटे-छोटे तालों में पानी भर गया और वे एक-एक करके टूटते चले गए। इन तालों के टूटने से पानी का बहाव तेजी से बढ़ा, और वह अपने साथ भारी मात्रा में मलबा, बोल्डर और गाद लेकर नीचे की ओर बहने लगा।

ऊंचाई से बहता यह पानी जब खीर गंगा में मिला, तो नदी में अचानक उफान आ गया। पानी और मलबे का यह प्रचंड प्रवाह इतनी तेजी से नीचे आया कि उसने पल भर में धराली कस्बे को तबाह कर दिया। विशेषज्ञों का कहना है कि ढलान तीव्र होने के कारण पानी की गति और भी बढ़ गई, जिससे तबाही का मंजर और भी भयावह हो गया।

इस घटना में सबसे ज्यादा नुकसान खीर गंगा के पुराने रास्ते पर बसे उन मकानों, होटलों और बाजारों को हुआ, जो हाल के वर्षों में बनाए गए थे। हैरान करने वाली बात यह है कि गांव के पुराने हिस्से, जो सुरक्षित ऊंचाई पर बनाए गए थे, उन्हें कोई खास नुकसान नहीं हुआ। यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि पुराने समय में लोग प्रकृति के नियमों को समझते हुए ही अपने घर बनाते थे।

News : मानवीय भूल और नियमों का उल्लंघन

प्रोफेसर चौनियाल ने इस बात पर जोर दिया कि धराली कस्बे में हुआ निर्माण कार्य नियमों के विपरीत था। उनके अनुसार, गंगोत्री हाईवे के पास नदी के किनारे असुरक्षित स्थानों पर मकान और व्यावसायिक प्रतिष्ठान बना दिए गए थे। खीर गंगा ने अपने पुराने मार्ग पर लौटकर इन अवैध निर्माणों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया।

यह त्रासदी एक बार फिर यह सवाल उठाती है कि क्या हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं? हिमालय जैसे संवेदनशील और भूकंप-प्रवण क्षेत्र में इस तरह के अंधाधुंध निर्माण कार्य भविष्य में भी ऐसी ही आपदाओं का कारण बन सकते हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार और स्थानीय प्रशासन को ऐसी जगहों पर निर्माण कार्यों पर सख्त निगरानी रखनी चाहिए और नियमों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करना चाहिए।

News : भविष्य की चेतावनी

उत्तरकाशी की यह आपदा केवल एक घटना नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर चेतावनी है। जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे इस तरह के “ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड” (GLOF) की घटनाएं बढ़ रही हैं। अगर हमने इस चेतावनी को अनदेखा किया, तो भविष्य में ऐसी और भी विनाशकारी आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है।

स्थानीय समुदायों को जागरूक करना, आपदा प्रबंधन के लिए तैयारी करना, और संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध लगाना ही इस तरह की त्रासदियों से निपटने का एकमात्र रास्ता है। उत्तरकाशी की इस घटना से मिले सबक को गंभीरता से लिया जाना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी जानलेवा आपदाओं को रोका जा सके।