News : जान जोखिम में डाल स्कूल जा रहे बच्चे: उफनती सरयू नदी बनी ‘मौत का रास्ता’!

News : उत्तराखंड में मानसून की दस्तक के साथ ही पहाड़ी इलाकों में चुनौतियां भी बढ़ गई हैं। भारी बारिश के चलते सीमांत जिला मुख्यालयों में नदियाँ और नाले उफान पर हैं, जिससे आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है।

इसी बीच, पिथौरागढ़ से एक हृदय विदारक तस्वीर सामने आई है, जहाँ स्कूली बच्चे अपनी जान हथेली पर रखकर उफनती नदी के किनारे से स्कूल जाने को मजबूर हैं। यह घटना एक बार फिर पहाड़ी क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे की कमी और प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशीलता को उजागर करती है।

News: एक दशक से अधूरा पैदल मार्ग, बच्चों की जान दांव पर

पिथौरागढ़ और चंपावत की सीमा पर स्थित घाट क्षेत्र में रामेश्वर मंदिर को जोड़ने वाला पैदल मार्ग पिछले एक दशक से भी अधिक समय से अधूरा पड़ा है। वर्ष 2013 की आपदा में क्षतिग्रस्त हुआ यह मार्ग अब तक पूरी तरह से दुरुस्त नहीं हो पाया है, जिसका खामियाजा स्कूली बच्चों से लेकर स्थानीय ग्रामीण और श्रद्धालु तक भुगत रहे हैं।

बोतड़ी, टिम्टा, नैनी और सितोला जैसे गांवों से आने वाले बच्चे शिक्षा के लिए गंगोलीहाट के जीआईसी दुबौला विद्यालय पर निर्भर हैं। इस विद्यालय में वर्तमान में 200 से अधिक छात्र-छात्राएं पढ़ रहे हैं।

इन गांवों से विद्यालय पहुंचने के लिए लगभग 3 किलोमीटर का पैदल रास्ता रामेश्वर मंदिर होते हुए जाता है। लेकिन, भारी बारिश और भूस्खलन के कारण यह पैदल मार्ग इन दिनों बुरी तरह से क्षतिग्रस्त है। ऐसे में, बच्चों को स्कूल पहुंचने के लिए उफनती सरयू नदी के किनारे पत्थरों पर कूदकर रास्ता तय करना पड़ रहा है।

यह दृश्य बेहद खतरनाक है, और एक छोटी सी चूक भी बच्चों की जिंदगी पर भारी पड़ सकती है। ग्रामीणों को लगातार दुर्घटना का भय सता रहा है, और इस भयावह स्थिति का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसने प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया है।

News : पुल मौजूद, पर पहुंच मार्ग ही क्षतिग्रस्त

अवर अभियंता, लोनिवि बेरीनाग के संजय सिंह ने बताया है कि नदी पर दो झूला पुल मौजूद हैं और उन पर आवाजाही भी होती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जहाँ वीडियो में बच्चे जाते हुए दिख रहे हैं, उससे कुछ ही दूरी पर पुल बना हुआ है। वर्ष 2013 में क्षतिग्रस्त हुए पुल के स्थान पर नए पुल का निर्माण भी कर दिया गया था।

हालांकि, समस्या पुलों की उपलब्धता की नहीं, बल्कि पुलों तक पहुंचने वाले संपर्क मार्ग की है। राजेंद्र भट्ट, अध्यक्ष, ग्रामीण संघर्ष समिति, ने बताया कि सरयू नदी का जलस्तर इन दिनों बढ़ा हुआ है, जिससे बच्चों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं हैं।

ग्रामीणों का आरोप है कि 2013 की आपदा के बाद से पैदल मार्ग ध्वस्त हो गया था और तब से इसे पूरी तरह से दुरुस्त नहीं किया गया है। ग्रामीणों ने ही मिलकर अस्थायी रूप से पैदल मार्ग तैयार किया है, लेकिन बारिश होते ही यह फिर से खस्ताहाल हो जाता है, जिससे बच्चों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

News : ग्रामीणों की मांग और प्रशासन की जिम्मेदारी

ग्रामीण संघर्ष समिति के अध्यक्ष राजेंद्र भट्ट ने प्रशासन से इस पैदल मार्ग को तत्काल दुरुस्त करने की मांग की है। यह केवल इस गांव की समस्या नहीं है, बल्कि उत्तराखंड के कई दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों में मॉनसून के दौरान ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

सड़कों और पैदल मार्गों का अभाव, भूस्खलन का खतरा, और उफनती नदियां शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधा तक पहुंच को बाधित करती हैं। बच्चों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए, प्रशासन और संबंधित विभागों को इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

सरकार की विभिन्न योजनाओं के बावजूद, अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना अभी भी एक बड़ी चुनौती है। पिथौरागढ़ की यह घटना हमें याद दिलाती है कि भले ही बड़े पुलों का निर्माण हो गया हो, लेकिन उन तक पहुंचने वाले छोटे पैदल मार्गों की उपेक्षा बच्चों के भविष्य और जीवन को सीधे तौर पर प्रभावित कर सकती है।

यह समय है जब सरकार और स्थानीय प्रशासन को ऐसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए जो सीधे तौर पर आम नागरिक, विशेषकर बच्चों के जीवन को प्रभावित करती हैं। एक सुरक्षित मार्ग न केवल बच्चों को स्कूल तक पहुंचने में मदद करेगा, बल्कि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था और सामाजिक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान देगा।

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