29 सितंबर, रविवार से शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो रही हैं। इस दिन व्रत रखने वाले लोग घर पर घट स्थापना करते है। इसके साथ ही मां दुर्गा के पहले रूप शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मार्केण्डय पुराण के अनुसार, पर्वतराज यानि शैलराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। इसके साथ ही मां शैलपुत्री का वाहन बैल होने के कारण इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। मां शैलपुत्री के रूप के बारे में बताएं तो इनके दो हाथों में से दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल सुशोभित है।
कलश स्थापना का मुहूर्त…
अस्तु सुबह 07 बजकर 40 मिनट से कलश स्थापना शुरू करके दोपहर 12 बजकर 12 तक कभी भी किया जा सकता है | दोपहर में 11 बजकर 50 मिनट से 12 बजकर 12 मिनट के बीच अभिजित मुहूर्त भी रहेगा | ये मुहूर्त भी बेहद शानदार होता है |
नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की उपासना…
नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की उपासना की होती है। इस दिन मां शैलपुत्री की उपासना करने से व्यक्ति को धन-धान्य, ऐश्वर्य, सौभाग्य तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है।
फिर अखंड ज्योति जला लें…
मां शैलपुत्री की पूजा के लिए उनकी तस्वीर या फिर प्रतिमा की स्थापित करके पूजा की जाती है। इसके बाद कलश स्थापना करें। जिसके ऊपर आम के पत्ते रखकर पराई रखें। इसके बाद इसके ऊपर नारियल रखें। फिर अखंड ज्योति जला लें।
‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:…
अब देवी मां के इस मंत्र से उनकी उपासना करनी चाहिए। मंत्र है- ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:।’ मां को सफेद फूलों की माला अर्पित करें। इसके साथ ही सफेद रंग की खीर या किसी सफेद चीज का भोग लगाए। इसके बाद चालीसा करें और मां की आरती कर लें।
देवी मां प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर अपनी कृपा बनाये रखती…
शास्त्रों में बताया गया है कि नवरात्र के पहले दिन देवी के शरीर में लेपन के तौर पर लगाने के लिए चंदन और केश धोने के लिए त्रिफला चढ़ाना चाहिए । त्रिफला में आंवला, हर्रड़ और बहेड़ा डाला जाता है। इससे देवी मां प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर अपनी कृपा बनाये रखती हैं।