News : उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल को जोड़ने वाले जीवन रेखा, ऋषिकेश-बदरीनाथ नेशनल हाईवे (NH-07) पर एक गंभीर भूवैज्ञानिक संकट मंडरा रहा है।
हाल ही में तोता घाटी क्षेत्र में सामने आई विशाल दरारें ने विशेषज्ञों और प्रशासन की चिंता बढ़ा दी है, जो इस महत्वपूर्ण मार्ग के भविष्य के लिए एक बड़ा खतरा बनकर उभर रही हैं।
यदि इन दरारों को समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया, तो पूरा पहाड़ी हिस्सा टूटकर गिर सकता है, जिससे न केवल यातायात ठप होगा बल्कि पर्यावरणीय आपदा भी आ सकती है।
News : तोता घाटी- एक सामरिक और धार्मिक महत्व का मार्ग
तोता घाटी NH-07 पर ऋषिकेश से श्रीनगर के बीच लगभग 75-80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक बेहद संवेदनशील क्षेत्र है। यह मार्ग न केवल सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, बल्कि गढ़वाल की धार्मिक (केदारनाथ और बदरीनाथ धाम), पर्यटक और दैनिक आवाजाही इसी पर निर्भर करती है।
यदि किसी कारणवश यह मार्ग बंद होता है, तो वर्तमान में कोई व्यावहारिक और स्थायी वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध नहीं है, जो इसकी संवेदनशीलता को और बढ़ा देता है।
यह इलाका अपनी लाइमस्टोन (चूना पत्थर) संरचना के लिए जाना जाता है, जिसे हिमालय की सबसे कमजोर भू-संरचनाओं में से एक माना जाता है। इस भूवैज्ञानिक कमजोरी के कारण, यह क्षेत्र भूस्खलन और भूवैज्ञानिक अस्थिरता के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।
News : खतरनाक दरारें और भू-वैज्ञानिकों की चेतावनी
वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट ने हाल ही में तोता घाटी क्षेत्र में देखी गई कई बड़े-बड़े फ्रैक्चर और दरारों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उनके अनुसार, इनमें से कुछ दरारें ढाई से तीन फीट तक चौड़ी हैं, जो पहाड़ में काफी गहराई तक प्रवेश कर चुकी हैं।
बिष्ट का कहना है कि इन दरारों की सटीक गहराई का अंदाजा लगाना मुश्किल है, लेकिन यह अनुमान है कि ये सैकड़ों मीटर तक गहरी हैं और “पूरा पहाड़ चीरती हुई अनंत गहराई में जा रही हैं।”
भू-वैज्ञानिक महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट ने स्पष्ट रूप से चेताया है कि “यदि ये दरारें समय रहते नियंत्रित नहीं हुईं तो पूरा पहाड़ी हिस्सा टूटकर नीचे गिर सकता है।” ऐसी स्थिति में, ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे पर यातायात पूरी तरह ठप हो जाएगा, जिससे चारधाम यात्रा और स्थानीय जीवन बुरी तरह प्रभावित होगा।
सबसे भयावह चेतावनी यह है कि यदि रॉक फॉल (चट्टान का गिरना) होता है, तो पूरा पर्वतीय मलबा गंगा में समा सकता है, जिससे न केवल मार्ग बाधित होगा, बल्कि पर्यावरण और जलप्रवाह पर भी गंभीर असर पड़ेगा। यह गंगा नदी के पारिस्थितिकी तंत्र और निचले इलाकों में जल-स्तर को प्रभावित कर सकता है, जिससे एक बड़ी पर्यावरणीय आपदा की संभावना है।
News : वैकल्पिक मार्ग का अभाव और प्रशासनिक सतर्कता
महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट ने इस गंभीर खतरे को लेकर उत्तराखंड के मुख्य सचिव आनंद वर्धन को भी सूचित किया है और उनसे तत्काल कार्रवाई का आग्रह किया है।
उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया है कि “तोता घाटी में कोई वैकल्पिक मार्ग मौजूद नहीं है।” उनकी सलाह है कि “हमें जल्द से जल्द यहां एक सुरक्षित और स्थायी वैकल्पिक मार्ग की योजना बनानी चाहिए।”
वैज्ञानिकों की इस गंभीर चेतावनी के बाद, लोक निर्माण विभाग (PWD) भी तोता घाटी को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरतने लगा है।
विभाग अब इस क्षेत्र की लगातार निगरानी कर रहा है और भू-वैज्ञानिकों के साथ मिलकर संभावित समाधानों पर विचार कर रहा है। हालांकि, इतने बड़े पैमाने पर दरारों को नियंत्रित करना और एक स्थायी समाधान खोजना एक बड़ी चुनौती होगी।
News : संभावित समाधान और चुनौतियाँ
तोता घाटी में सामने आए इस संकट से निपटने के लिए कई संभावित समाधानों पर विचार किया जा सकता है:
* तत्काल भू-तकनीकी अध्ययन: दरारों की गहराई, विस्तार और भूवैज्ञानिक स्थिरता का विस्तृत अध्ययन किया जाना चाहिए ताकि खतरे की सही सीमा का आकलन किया जा सके।
* स्थिरीकरण उपाय: ढलानों को स्थिर करने के लिए इंजीनियरिंग समाधानों जैसे रॉक बोल्टिंग, शॉटक्रिटिंग, और रिटेनिंग वॉल का निर्माण करना।
* वैकल्पिक मार्ग की योजना: जैसा कि भू-वैज्ञानिक ने सुझाव दिया है, तोता घाटी के आसपास एक सुरक्षित और टिकाऊ वैकल्पिक मार्ग की पहचान और विकास करना। यह एक दीर्घकालिक समाधान होगा, लेकिन इसकी आवश्यकता स्पष्ट है।
* प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: भूस्खलन और चट्टान गिरने की निगरानी के लिए सेंसर-आधारित प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करना ताकि यातायात को समय पर रोका जा सके और जान-माल के नुकसान से बचा जा सके।
हालांकि, हिमालयी क्षेत्र की जटिल भूवैज्ञानिक प्रकृति और अनिश्चित मौसम इन समाधानों को लागू करने में बड़ी चुनौतियाँ पैदा करते हैं। सड़क निर्माण और रखरखाव में भूवैज्ञानिक स्थिरता हमेशा एक बड़ी बाधा रही है।
उत्तराखंड सरकार और संबंधित विभाग अब एक बड़ी परीक्षा का सामना कर रहे हैं। तोता घाटी में इस गंभीर भूवैज्ञानिक संकट से कैसे निपटा जाता है, यह न केवल हजारों तीर्थयात्रियों और स्थानीय निवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, बल्कि उत्तराखंड के भविष्य में बुनियादी ढांचे के विकास और आपदा प्रबंधन के दृष्टिकोण को भी आकार देगा।